जब तक जीव नहीं कहता भगवान उसके मोह को नहीं मारते।
लंका काण्ड में राम रावण युद्ध बड़ा लंबा चला, भगवान जैसे ही उसके सिरों को काटते हैं, सिरों का समूह और भी बढ़ जाता है, जैसे प्रत्येक लाभ पर लोभ बढ़ता है वैसे ही सिर काटने पर बढ़ते चले जाते हैं।
"काटत बढ़हिं सीस समुदाई, जिमि प्रति लाभ लोभ अधिकाई"
भगवान शिव पार्वती जी से कहते हैं:
"उमा काल मर जाकीं ईछा, सो प्रभु जन कर प्रीति परीछा"
अर्थात - शिव जी कहते हैं, हे उमा! जिसकी इच्छा मात्र से काल भी मर जाता है वही प्रभु सेवक की परीक्षा ले रहे हैं।
भगवान को पता था रावण कैसे मरेगा और शिव जी स्वयं कह रहे हैं कि जिनकी इच्छा मात्र से काल भी मर जाए, फिर रावण को मारना कौन सी बड़ी बात थी परन्तु भगवान मारते नहीं है, केवल रावण को मूर्छित करते हैं, युद्ध दूसरे दिन पर चला जाता है, अगले दिन भी ऐसा ही होता है तब श्री राम जी ने विभीषण की ओर देखा।
"सुनु सरबग्य चराचर नायक,
प्रनतपाल सुर मुनि सुखदायक"
प्रनतपाल सुर मुनि सुखदायक"
अर्थात - विभीषण जी ने कहा : हे सर्वज्ञ! हे चराचर के स्वामी! हे शरणागत के पालक करने वाले, हे देवता और मुनियों को सुख देने वाले सुनिये:-
"नाभि कुंड पियूष बस याकें,
नाथ जिअत रावनु बल ताकें
सुनत बिभीषन बचन कृपाला,
हरषि गहे कर बान कराला"
नाथ जिअत रावनु बल ताकें
सुनत बिभीषन बचन कृपाला,
हरषि गहे कर बान कराला"
अर्थात - इसके नाभि कुंड में अमृत का निवास है, हे नाथ! रावण उसी के बल पर जीता है, विभीषण के वचन सुनते ही कृपालु श्री रघुवीर जी ने हर्षित होकर हाथ में विकराल बाण लिये, फिर रावण को मारा।
रावण 'मोह' 'अहंकार' स्वरुप है और विभीषण 'जीव' है, जब तक जीव नहीं कहता मेरे मोह अहंकार को मारो, तब तक भगवान भी तमाशा ही देखा करते हैं। भगवान चाहते तो रावण को मार सकते थे परन्तु भगवान प्रतीक्षा करते हैं और जब विभीषण कहता है तब मारते हैं।
इसी तरह हम भी यही करते हैं। विभीषण रूपी जीव की तरह सद्गुरु की शरण में तो चले जाते हैं परन्तु रावण रूपी मोह, अहंकार अपनों से, वस्तुओं से नहीं छोड़ पाते। सद्गुरु भी इसी तरह प्रतीक्षा करते हैं कि शरण में तो आ गया, परन्तु अभी कुछ पीछे चिपका हुआ है उसे छोड़ और वे जानते हैं मोह से मैं ही छुड़ाऊंगा, पर पहला कदम तो भक्त को ही उठाना पड़ेगा बाकी सब सद्गुरु संभाल लेते हैं।
सच्चे सद्गुरु हमें सदैव यही समझाते हैं कि यदि भगवान भी तुम्हारे सामने आ जाये तो उसे कैसे पहचानोगे और किससे पूछोगे कि यही भगवान है। यह स्वांस जो आ रहा है, जा रहा है इसे पकड़ सकोगे? जिस पल हम यह समझ जायेंगे कि सामने वाला गलत नहीं है सिर्फ उसकी सोच हमसे अलग है। उसी पल जीवन से सब दुख समाप्त हो जायेंगे और जीवन में शांति का पदार्पण हो जायेगा।
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